रांची: झारखंड में विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ ही सभी पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है. भाजपा भी जल्द ही अपने उम्मीदवारों के नाम की आधिकारिक घोषणा कर सकती है. सूत्रों के अनुसार, भाजपा सभी सिटिंग विधायकों को टिकट देने की योजना बना रही है, लेकिन इस बीच कोल्हान के ‘टाइगर’ चंपाई सोरेन का क्या होगा ये सवाल सूबे की सियासत में ज़ोर पकड़ रहा है. चुनाव की घोषणा से पहले दिल्ली में हुई भाजपा की बैठक में चंपाई सोरेन शामिल हुए थे, लेकिन बैठक के बाद जब भाजपा के वरिष्ठ नेता रांची लौटे, तो चंपाई ने मीडिया से बातचीत से परहेज किया.
चंपाई की लोकप्रियता में कमी !
चंपाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के बाद उन्हें एक ‘टाइगर’ के रूप में देखा जा रहा था, जो कोल्हान की सीटें भाजपा के खाते में लाएंगे. हालांकि, हालिया समय में उनकी लोकप्रियता में कमी आई है, जिससे चंपाई की चिंताएँ बढ़ी हैं. उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों में भीड़ की कमी ने उनकी प्रभावशीलता पर सवाल उठाए हैं. पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि चंपाई अब भाजपा के लिए एक लायबिलिटी बनते जा रहे हैं, जिससे पार्टी की चुनावी रणनीतियों पर असर पड़ सकता है.
इस पर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चंपाई की लोकप्रियता में कमी का एक मुख्य कारण यह है कि वे हमेशा झामुमो के चुनाव चिन्ह पर जीत हासिल करते आए हैं. कोल्हान की जनता अब भी उनके नाम से ज्यादा चुनाव चिन्ह देखकर वोट देती है. हाल के लोकसभा चुनाव में दुमका से भाजपा के उम्मीदवार सीता सोरेन के साथ यही स्थिति देखने को मिली थी.
क्या बेटे को मिलेगा टिकेट ?
इसके अलावा, चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन ने भी भाजपा का दामन थामा है, और चर्चा है कि उन्हें घाटशिला से चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है. लेकिन अंदरखाने की खबरों के अनुसार, अगर बाबूलाल को घाटशिला से उम्मीदवार बनाया गया, तो कई भाजपा समर्थक पार्टी के इस फैसले का विरोध कर सकते हैं जो हुसैनाबाद में देखा भी गया है.
कुल मिलाकर देखे तो चंपाई सोरेन की मौजूदा स्थिति भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है. अगर स्थिति में सुधार नहीं होता, तो पार्टी को आगामी चुनावों में गंभीर निर्णय लेने पड़ सकते हैं. चुनाव में चंपाई का जादू चल पाएगा या नहीं, यह एक बड़ा सवाल खुद चंपाई और भाजपा के लिए बना हुआ है. इसके साथ ही एक सवाल यह भी है कि चंपाई कोल्हान की सारी सीट भाजपा की झोली में डाल पाएंगे. यह तो आने वाले चुनाव के परिणाम के बाद ही स्पष्ट हो सकता है.