झारखंड में विधानसभा चुनाव का माहौल गरमाता जा रहा है. इसी बीच, झामुमो को छोड़कर अन्य पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों के नाम की घोषणा करनी शुरू कर दी है. भाजपा में टिकट न मिलने से नाराज कई नेता अब पाला बदल रहे हैं. हाल ही में केदार हाजरा, उमाकांत रजक, पूर्व विधायक लुईस मरांडी, घाटशिला के पूर्व विधायक लक्ष्मण टुडू, सरायकेला विधानसभा से भाजपा के पूर्व प्रत्याशी गणेश महाली, पूर्वी सिंहभूम के जिला परिषद अध्यक्ष बारी मुर्मू, भाजपा नेता बास्को बेसरा, और बहड़ागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का हाथ थाम लिया. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इन सभी नेताओं का स्वागत किया.
इन नेताओं के झामुमो में शामिल होने से जहां एक ओर झामुमो की स्थिति मजबूत हुई है, वहीं भाजपा की स्थिति कमजोर होती दिखाई दे रही है, खासकर कोल्हान क्षेत्र में. ऐसे में सवाल उठता है कि इन नेताओं के विधानसभा चुनाव के नजदीक इस कदम उठाने के पीछे की वजह क्या है?
परिवारवाद बनी वजह ?
विश्लेषण करने पर पता चलता है कि भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्रियों के परिवारों को प्राथमिकता देने का एक बड़ा कारण है. उदाहरण के लिए, भाजपा ने घाटशिला से पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को चुनावी मैदान में उतारा है, पोटका से अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा को, जमशेदपुर पूर्वी से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू को, और जगन्नाथपुर से पूर्व मुख्यमंत्री मधुकोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को टिकट दिया है.
भाजपा के अंदर उपजे इस परिवारवाद की वजह से पार्टी में फूट पड़ गई है, जिससे चुनावी माहौल बदल गया है. 2019 के विधानसभा चुनावों में, कोल्हान की 14 सीटों में से एक भी पर एनडीए को जीत नहीं मिली थी. सभी सीटों पर इंडिया गठबंधन का कब्जा रहा था, जो भाजपा के लिए एक बड़ा झटका था.
इस बार, भाजपा कोल्हान में अपने परिवारवाद के कारण कठिनाइयों का सामना कर सकती है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा इस बार अपने पुराने प्रदर्शन को सुधारने में सफल हो पाएगी या फिर 2024 के चुनावों में स्थिति और गंभीर हो जाएगी.