आज (7 नवंबर) को चार दिवसीय छठ महापर्व का तीसरा दिन है, और इस दिन पहला अर्घ्य दिया जाता है. यह विशेष दिन कार्तिक माह की षष्ठी तिथि को आता है, जब अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन बिना पानी पिए व्रत रखते हैं और शाम के समय किसी जलाशय, नदी या तालाब में जाकर सूर्य की उपासना करते हैं. डूबते हुए सूर्य को दूध और पानी से अर्घ्य दिया जाता है, और इसके लिए तांबे के लोटे का इस्तेमाल करना चाहिए, जिसमें गंगा जल और दूध मिलाकर सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है. इस दिन सूर्यास्त 5:28 बजे होगा.
छठ पूजा में विशेष रूप से डूबते सूर्य की पूजा होती है
यह केवल छठ महापर्व में ही देखा जाता है कि व्रती अस्ताचलगामी सूर्य की पूजा करते हैं. मान्यता है कि इस समय सूर्य देव अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ होते हैं, और इस समय प्रत्यूषा को अर्घ्य अर्पित किया जाता है. सूर्यास्त के समय सूर्य देव की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और सभी परेशानियां दूर होती हैं. इसे संतान प्राप्ति और संतान के कल्याण के लिए भी शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने से आँखों की रौशनी बढ़ती है, आयु लंबी होती है और आर्थिक समृद्धि भी मिलती है. विद्यार्थियों के लिए भी यह समय विशेष होता है, क्योंकि अर्घ्य देने से उन्हें उच्च शिक्षा में लाभ प्राप्त होता है.
अंतिम दिन उदीयमान सूर्य की पूजा होती है
छठ पूजा का अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को आता है, जब उदीयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है. इस दिन सूर्योदय 6:32 बजे और सूर्यास्त 5:06 बजे होगा. सूर्योदय के समय सूर्य देव की पहली किरण को अर्पित कर व्रती धन, सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करते हैं. इसके बाद व्रति अपना 36 घंटे का निर्जला उपवास समाप्त करते हैं और पारण करते हैं.
महापर्व का समापन अरुणोदय में होता है
छठ महापर्व की शुरुआत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय से होती है, जब व्रति अरवा चावल, चना दाल और कद्दू की सब्जी खाते हैं. इस दिन के बाद घर के सभी सदस्य व्रतियों के द्वारा तैयार प्रसाद का सेवन करते हैं. 6 नवंबर को खरना हुआ, जब रात में व्रति खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसके बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है. आज यानी 7 नवंबर को पहला अर्घ्य है, जबकि छठ के चौथे दिन, अर्थात 8 नवंबर को अरुणोदय में सूर्य को अर्घ्य देकर इस महापर्व का समापन होगा.