बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी होती है, तो चुनाव आयोग को बिहार की मतदाता सूची के पुनरीक्षण परिणामों को रद्द करने का अधिकार है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, यह केवल पहचान के प्रमाण के रूप में माना जा सकता है. साथ ही, चुनाव आयोग ने बताया कि यह प्रक्रिया अभी केवल ड्राफ्ट है और अंतिम सूची नहीं आई है, इसलिए इसे अंतिम रूप से मान्यता नहीं दी जा सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि उन्हें कुछ तथ्य और आंकड़े चाहिए ताकि प्रक्रिया की वैधता का मूल्यांकन किया जा सके. वहीं, वकील कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया में संविधानिक प्रावधानों की अनदेखी की गई है. वकील अभिषेक मनु सिंघवी और प्रशांत भूषण ने भी इस पर सवाल उठाए.
योगेंद्र यादव ने इस पर अपनी दलील दी कि मतदाता सूची में सुधार का मुख्य उद्देश्य वोटर लिस्ट में नामांकित लोगों की संख्या को बढ़ाना है. उन्होंने कहा कि भारत में 99% वयस्क नागरिकों का नाम वोटर लिस्ट में है, जबकि बिहार में यह आंकड़ा 97% है, और इस स्थिति को और सुधारने की जरूरत है.
प्रशांत भूषण ने भी आरोप लगाया कि प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हैं, जिसमें कई मृतक व्यक्तियों को जीवित दिखाया गया है, जबकि कुछ जीवित व्यक्तियों को मृत के रूप में दिखाया गया है. इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया अभी ड्राफ्ट में है और जिनके नाम गलत तरीके से हटाए गए हैं, वे अपनी आपत्तियां दर्ज कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह इस प्रक्रिया की पूरी जांच करें, और यदि कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो इसके परिणामों को रद्द किया जा सकता है. हालांकि, चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि 2003 की मतदाता सूची में पहले से मौजूद मतदाताओं को दस्तावेज़ जमा करने की आवश्यकता नहीं है.
एसआईआर (Special Intensive Revision) एक विशेष प्रक्रिया है जिसके तहत मतदाता सूची को अद्यतन किया जाता है, ताकि उसमें कोई गड़बड़ी न हो और यह प्रक्रिया निष्पक्ष रहे. इसमें चुनाव आयोग के अधिकारी घर-घर जाकर सत्यापन करते हैं और दस्तावेजों की जांच करते हैं. इस प्रक्रिया का उद्देश्य चुनावों में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखना है, लेकिन बिहार में इसे लेकर विवाद उठ रहे हैं, खासकर तब जब ड्राफ्ट सूची में 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए गए हैं.