रांची
भारत के विभिन्न क्षेत्रों की अपनी-अपनी मान्यताएँ और परंपराएँ हैं, और झारखंड में आदिवासी समाज की विशेष पूजा और परंपराएँ बेहद महत्वपूर्ण हैं. इनमें से एक प्रमुख उत्सव है करमा पूजा. राज्य भर में पूरे धूमधाम के साथ करमा पर्व मनाया जा रहा है. आदिवासी समुदाय के लोग पूरी आस्था और परंपरा के साथ इस पर्व को मना रहे हैं. प्रकृति से जुड़ाव की हो या फिर अपनी परंपराओं को जिन्दा रखने की बात, आदिवासी समाज सबसे बेहतरीन उदाहरण है. बात अगर करमा पर्व की करें तो करमा पर्व भाई और बहन के आपसी प्रेम और मजबूती को दर्शाता है. इस दिन करमा और धर्मा देवताओं की पूजा की जाती है जो पारिवारिक सुख-शांति के प्रतीक माने जाते हैं. इस अवसर पर लोग करम पेड़ की डाली को आंगन में रोपते हैं. पूरी पारंपरिक विधि के साथ पूजा करते हैं साथ ही भाई-बहन के रिश्ते की दृढ़ता और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं.
कर्मडाल की महत्त्वता
कर्मडाल की पूजा क्यों की जाती है, यह जानना दिलचस्प है. आदिवासी समाज मानते हैं कि कर्मडाल, जिसे कर्म के देवता के रूप में पूजा जाता है, उनके कर्म और किस्मत को निर्धारित और बदलने की शक्ति रखते हैं. इस पूजा के दौरान महिलाएं 24 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं और विशेष पकवान, जैसे पुआ, तैयार किए जाते हैं.पूजा के दिन को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. करमा पूजा का महत्व इस बात में है कि यह कर्मडाल को श्रद्धांजलि देने का एक तरीका है, जो हमारे कर्म और किस्मत को आकार देते हैं. झारखंड में वृक्ष पूजा की परंपरा भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैसोर की प्रजातियाँ हुई थीं।
पूजा के बाद ‘करम नृत्य’ के खूबसूरत रंग
पूजा अर्चना के बाद स्त्री-पुरुष करम की डाली के चारो ओर मांदर, ढोल और नगाड़ों के साथ एक विशेष प्रकार का नृत्य करते हैं जिन्हें ‘करम नृत्य’ कहा जाता है. ये नृत्य नई फसल के आने की खुशी में किया जाता है. ऐसा देवी-देवताओं को भोग लगाने के बाद ही अन्न का उपयोग शुरू होता है. प्रत्येक वर्ष भादो मास की एकादशी को यह पर्व मनाया जाता है.