असम के चाय बागानों में झारखंड के भारी मात्रा में आदिवासी मजदूर काम करते हैं. इनमें से कई वैसे लोग हैं जिनके पूर्वज ही काम करने के लिये चले गए थे. असम में उन्हें ओबीसी के अंतर्गत माना जाता है, जिसके कारण वे सरकारी के द्वारा दी जाने वाली बुनियादी सुविधाएं से महरूम हो जाते हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन उन्हें एसटी का दर्जा दिलाने की मांग करते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को पत्र लिखा है. उन्होंने कहा कि मैं उन आदिवासी मजदूरों की चुनौतियों और मुश्किलों से भली भांति वाकिफ हूं. एसटी का दर्जा मिलने से उन्हें रोजगार और शिक्षा में मिल रहे आरक्षण का लाभ मिलेगा क्योंकि एसटी को ओबीसी से ज्यादा सुविधाएं मुहैया करवाई गई है. उन्होंने हेमंत बिस्वा को ये भी कहा कि इस ऐतिहासिक अन्याय को आज दूर करने की जरूरत है.
असम में चाय मजदूरों की स्थिति दयनीय
असम के चाय बागानों में झारखंड के आदिवासियों का बेहद महत्वपूर्ण योगदान है. झारखंड की कई जनजाति जैसे संथाली, मुंडा, उरांव काम करती है जो एक तरह से यहां की अर्थव्यवस्था और संस्कृति के संरक्षक माने जाते हैं. लेकिन इसके बावजूद इनकी स्थिति बहुत बेहतर नहीं है. उन्हें अपनी बुनियादी जरूरतों के लिये मशक्कत करनी पड़ती है. अभाव में उनका जीवन बीत रहा है. हेमंत सोरेन ने कहा कि इनकी चुनौतियों का समाधान करने के लिये व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है जिसमें नीतिगत सुधार, सामाजिक न्याय और उनकी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने की कोशिश हो.