प्रेग्नेंसी के दौरान बच्चे का जन्म मुख्य रूप से दो तरीकों से होता है, प्राकृतिक (नेचुरल) और सिजेरियन (सी सेक्शन). जहां प्राकृतिक जन्म में अक्सर दर्द का अनुभव होता है, वहीं सी सेक्शन एक विकल्प के रूप में लिया जाता है, खासकर जब कुछ जटिलताएं हों या दर्द से बचने की आवश्यकता हो. पिछले आठ वर्षों में, भारत में सी सेक्शन से जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है, विशेष रूप से निजी अस्पतालों में, जहां 50% से अधिक डिलीवरी इसी तरीके से हो रही है.
सी सेक्शन क्या है?
सी सेक्शन, जिसे सिजेरियन सेक्शन भी कहा जाता है, एक सर्जिकल प्रक्रिया है जिसके जरिए बच्चे का जन्म होता है. यह तब किया जाता है जब डिलीवरी के दौरान जटिलताएं हो सकती हैं, जिससे मां और बच्चे दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है. आमतौर पर, यह निर्णय 7वें से 9वें महीने में या डिलीवरी के समय परिस्थितियों के अनुसार लिया जाता है.
सी सेक्शन की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण
1. बच्चे का वजन
1990 और 2000 के दशक में, जन्म के समय बच्चे का औसत वजन 2.2 किलोग्राम था, जो अब 3.1 किलोग्राम हो गया है. ज्यादा वजन वाले बच्चों के लिए सी सेक्शन के माध्यम से जन्म लेना सुरक्षित विकल्प हो सकता है.
2. नियोनेटल मोर्टेलिटी रेट में कमी
पहले, प्राकृतिक जन्म के दौरान जटिलताओं के कारण कई बच्चे मारे जाते थे. लेकिन अब सी सेक्शन जैसी सुरक्षित प्रक्रिया उपलब्ध है, जिससे नियोनेटल मोर्टेलिटी रेट में कमी आई है.
3. हाई रिस्क प्रेग्नेंसी
महिलाएं अब 35 साल की उम्र के बाद शादी कर रही हैं, जिससे प्रेग्नेंसी के दौरान जटिलताएं बढ़ रही हैं, जैसे हाइपरटेंशन और डायबिटीज. ऐसे मामलों में, सी सेक्शन एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है.
WHO की गाइडलाइंस
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, सी सेक्शन की दर 10-15% से अधिक नहीं होनी चाहिए. लेकिन वर्तमान में, कई अस्पतालों में दो में से एक महिला सी सेक्शन के माध्यम से जन्म दे रही है, जो चिंता का विषय है.